नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। मध्य प्रदेश के सरकारी और निजी कालेजों से संचालित स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की रिक्त सीटों के लिए कॉलेज लेवल काउंसलिंग (सीएलसी) का अंतिम चरण चल रहा है, मगर कई कालेजों में सीटें भरने में परेशानी आ रही है। शुक्रवार शाम तक कई संस्थानों की आधी सीटों के लिए भी आवेदन नहीं आए हैं।
विशेषज्ञों ने बताया कि स्नातक की दस लाख सीटें हैं, जिसमें एक से सवा लाख सीटें भरना मुश्किल नजर आ रहा है। अब अनुमान लगाया गया है कि इस बार करीब पौने दो लाख सीटें खाली रह सकती हैं, क्योंकि विद्यार्थियों के पास आवेदन करने का शनिवार अंतिम दिन है।
बीए, बीकाम, बीएससी, बीएचएससी, बीजेएमसी, बीएसडब्ल्यू सहित अन्य स्नातक पाठ्यक्रम की 1386 कॉलेजों में दस लाख सीटें हैं। 15 मई से अब तक काउंसलिंग से पौने नौ लाख सीटों पर विद्यार्थियों को प्रवेश मिला है। ऐसे ही स्नातकोत्तर की तीन लाख में से सवा दो लाख सीटें भर चुकी हैं। अभी पौने दो लाख सीटों पर प्रवेश होना बाकी है। यह स्थिति इसलिए बनी है, क्योंकि ऑनलाइन प्रक्रिया को काफी जटिल कर दिया गया है।
साथ ही प्रवेश नियमों में भी बदलाव किए गए हैं। इसके चलते विद्यार्थियों को आवेदन करने में दिक्कतें आई हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक सीएलसी राउंड को कॉलेज स्तर पर प्रवेश का अवसर बनाने के बजाए पूरी तरह ऑनलाइन कर दिया गया।
विद्यार्थियों को पोर्टल पर बार-बार लाग-इन करने, दस्तावेज अपलोड करने और धीमी गति से जूझना पड़ा। कई बार तकनीकी गड़बड़ी के कारण प्रक्रिया अधूरी रह गई। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने सरकारी और निजी कॉलेज छोड़कर सीधे निजी विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना बेहतर समझा।
सीएलसी का उद्देश्य यह था कि विद्यार्थी सीधे कॉलेज जाकर प्रवेश ले सकें, लेकिन विभाग ने कालेजों को केवल मार्गदर्शन तक सीमित कर दिया। वास्तविक प्रवेश का अधिकार कॉलेजों के पास नहीं रहा। यही कारण है कि विद्यार्थियों को हर औपचारिकता खुद ऑनलाइन पूरी करनी पड़ी। इस झंझट से परेशान होकर कई छात्र-छात्राओं ने प्रवेश ही छोड़ दिया।
शिक्षाविद डॉ. मंगल मिश्र का कहना है कि विभाग को प्रवेश प्रक्रिया को ज्यादा लचीला और सरल बनाना चाहिए। यदि कॉलेजों को यह अधिकार दिया जाए कि वे सीधे दस्तावेज लेकर प्रवेश दे सकें और बाद में विभागीय औपचारिकताएं पूरी कर सकें तो विद्यार्थियों की कठिनाई काफी कम होगी।