
लाइफस्टाइल डेस्क। हनुक्का, जिसे यहूदी समुदाय में रोशनी के पर्व के रूप में जाना जाता है, यहूदी धर्म के प्रमुख त्योहारों में शामिल है। यह पर्व यहूदी कैलेंडर के किस्लेव महीने की 25 तारीख से शुरू होकर लगातार आठ दिनों तक मनाया जाता है। हनुक्का केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह आस्था, संघर्ष और स्वतंत्रता की जीत का प्रतीक भी माना जाता है।
इस पर्व के पीछे एक बेहद दिलचस्प इतिहास जुड़ा हुआ है, जो यहूदी समुदाय की धार्मिक आज़ादी के लिए लड़ी गई लड़ाई को दर्शाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि हनुक्का की शुरुआत कैसे हुई और यह त्योहार आठ दिनों तक क्यों मनाया जाता है।
हनुक्का की शुरुआत का इतिहास
हनुक्का की कहानी दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की है, जब जूडिया क्षेत्र पर सेल्यूसिड साम्राज्य का शासन था। उस समय राजा एंटियोकस एपिफेन्स ने यहूदियों पर यूनानी संस्कृति और धार्मिक नियमों को थोपने की कोशिश की। यहूदी धार्मिक परंपराओं पर रोक लगाई गई और यरूशलेम के दूसरे मंदिर को अपवित्र कर दिया गया।
इस दमन के खिलाफ यहूदियों ने विद्रोह किया, जिसे मकाबी विद्रोह के नाम से जाना जाता है। यहूदा मकाबी के नेतृत्व में एक छोटे से समूह ने सेल्यूसिड सेना का सामना किया और करीब तीन साल के संघर्ष के बाद 165 ईसा पूर्व में यरूशलेम और मंदिर को आज़ाद कराया।
आठ दिनों तक क्यों मनाया जाता है हनुक्का
मंदिर की शुद्धि के बाद जब मेनोराह जलाने की तैयारी की गई, तो वहां केवल एक दिन के लिए पर्याप्त शुद्ध जैतून का तेल उपलब्ध था। लेकिन माना जाता है कि चमत्कारिक रूप से वही तेल पूरे आठ दिनों तक जलता रहा, जब तक नया तेल तैयार नहीं हो गया। इसी चमत्कार की स्मृति में हनुक्का आठ दिनों तक मनाया जाता है।
इस साल हनुक्का 14 दिसंबर की शाम से शुरू होकर 22 दिसंबर की रात तक मनाया जा रहा है।
हनुक्का की परंपराएं
हनुक्का के दौरान विशेष हनुक्कियाह मेनोराह जलाई जाती है। पहले दिन एक शमा जलाई जाती है और हर अगले दिन एक नई शमा जोड़ते हुए आठवें दिन सभी आठ दीपक प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।
इस दौरान परिवार एक साथ समय बिताते हैं, प्रार्थना करते हैं और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। तेल में तले हुए पारंपरिक व्यंजन जैसे लटकेस और सूफगनियोट खाए जाते हैं। बच्चों को चॉकलेट के सिक्के भी दिए जाते हैं, जिन्हें ‘गेल्ट’ कहा जाता है।
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