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नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल: भारतीय परिवारों में धार्मिक और सामाजिक परंपराएं लंबे समय से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। ये परंपराएं घर की दिनचर्या, खान-पान और आचरण तय करती रही हैं। लेकिन बदलते समय और नई सोच के साथ कई घरों में ये परंपराएं टकराव का कारण बन रही हैं।
बहू का कहना है कि वह कामकाजी हैं और बदलती जीवनशैली के अनुसार घर के काम करना चाहती हैं, लेकिन परंपराओं के नाम पर उन पर लगातार मानसिक दबाव डाला जा रहा था। महिला थाना और वन स्टॉप सेंटर में ऐसे पारिवारिक विवादों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
शिकायतों में पूजा-पाठ, पहनावा, रसोई के नियम, कामकाज के तरीके और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर मतभेद सामने आते हैं। बदलती सोच और पारंपरिक अपेक्षाओं के बीच टकराव से उपजे ये विवाद मानसिक उत्पीड़न की शिकायतों का रूप ले रहे हैं। इस तरह के मामलों में दोनों पक्ष खुद को सही मानते हैं और एक-दूसरे की भावनाओं को समझने को तैयार नहीं होते।
सीनियर काउंसलर, रीता तुली का कहना है कि घर की परंपराओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन होना जरूरी है। जब किसी पर उसकी इच्छा के विरुद्ध नियम थोपे जाते हैं, तो वह मानसिक तनाव का कारण बन सकता है। बुजुर्गों को यह भी समझना चाहिए कि नई पीढ़ी की सोच अलग होती है।
यह मामला पिछले महीने दर्ज हुआ था। शिकायत के बाद दोनों पक्षों को काउंसलिंग के लिए बुलाया गया और अब तक तीन बार काउंसलिंग कराई जा चुकी है, लेकिन सास और बहू के बीच सहमति नहीं बन पाई। बहू का कहना है कि वह पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिला हैं और उन पर रोजमर्रा के धार्मिक नियम थोपना मानसिक दबाव जैसा है। वहीं सास का पक्ष है कि यह घर की परंपरा और अनुशासन का हिस्सा है, जिसे निभाना परिवार की जिम्मेदारी है।
- अंजना दुबे, महिला थाना प्रभारी, भोपाल