कान के पीछे दर्द को न करें नजरअंदाज, यह हो सकता है चेहरे के लकवे की चेतावनी... सर्दियों में बढ़ रहे बेल्स पाल्सी के केस
कान के पीछे हल्का दर्द अक्सर लोग सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यही दर्द चेहरे के लकवे यानी बेल्स पाल्सी (Bell Palsy Symptoms) की शुरुआत हो सकता है। सर्दियों के मौसम में इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इंदौर के बड़े अस्पतालों में हर सप्ताह कई मरीज सामने आ रहे हैं। जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट डा. आलोक मांदलिया-
Publish Date: Mon, 15 Dec 2025 06:34:05 PM (IST)
Updated Date: Mon, 15 Dec 2025 10:46:42 PM (IST)
Rising Bell Palsy Symptoms: सर्दियों में बेल्स पाल्सी के मामले तेजी से बढ़ते हैंHighLights
- शुरुआती 48 घंटे इलाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण
- बेल्स पाल्सी में केवल चेहरे की नस प्रभावित होती है
- समय पर इलाज से 95 प्रतिशत मरीज पूरी तरह ठीक
अरविंद दुबे, इंदौर: कान का दर्द आम है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि चेहरे के लकवे की शुरुआत इसी से होती है। सर्दियों में बेल्स पाल्सी के केस लगातार बढ़ रहे हैं। एमवाय जैसे बड़े अस्पतालों में हर हफ्ते 7 से 10 मरीज पहुंच रहे हैं। डाक्टरों के अनुसार, कई मरीज शुरुआती दिनों में केवल कान के पीछे दर्द को सामान्य समझकर अनदेखा कर देते हैं, जबकि बेल्स पाल्सी (Rising Bell Palsy Symptoms) का यही पहला संकेत है।
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बेल्स पाल्सी एक ऐसी स्थिति है, जिसमें चेहरे के एक तरफ अचानक कमजोरी या लकवा आ जाता है। यह आमतौर पर चेहरे की नस में सूजन या दबाव के कारण होता है। बेल्स पाल्सी को आम बोलचाल में चेहरे का लकवा कहा जाता है। इसमें केवल चेहरे की नसें प्रभावित होती हैं, जिससे चेहरे पर एक तरफ कमजोरी या टेढ़ापन आ जाता है, जबकि हाथ-पैर सामान्य रूप से काम करते रहते हैं।
इसके विपरीत, सामान्य लकवा या स्ट्रोक में दिमाग प्रभावित होता है। इसमें चेहरे के साथ-साथ हाथ-पैर में भी कमजोरी, बोलने में दिक्कत या संतुलन बिगड़ने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इसलिए चेहरे में अचानक बदलाव दिखते ही घबराने के बजाय सही पहचान जरूरी है, क्योंकि बेल्स पाल्सी अधिकतर मामलों में समय पर इलाज से पूरी तरह ठीक हो जाता है। जानिए एक्सपर्ट डॉ. आलोक मांदलिया, (न्यूरोफिजिशियन, बाम्बे हास्पिटल, इंदौर) की राय-
- ठंड के दिनों में बढ़ जाता है खतरा: ठंड में बेल्स पाल्सी के मामले बढ़ जाते हैं। सर्दी-जुकाम के दौरान वायरस गले के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है, जो बाद में चेहरे की नस (फेशियल नर्व) को प्रभावित करता है। कई बार यह वायरस शरीर में सुप्त अवस्था में रहता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होते ही सक्रिय होकर हमला कर देता है।
दो लक्षण सबसे अहम: पहला, कान के पिछले हिस्से में दर्द, क्योंकि जिस नस पर वायरस असर करता है, वह कान के पीछे से होकर गुजरती है। दूसरा, चेहरे का तिरछापन। इसके अलावा चेहरे में कमजोरी, आंख का पूरी तरह बंद न हो पाना जैसी समस्याएं भी सामने आती हैं।
डाक्टर के पास कब जाएं: इस बीमारी में शुरुआती 24 से 48 घंटे बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। इस अवधि में यदि एंटी-वायरल और सूजन कम करने की दवाएं शुरू हो जाएं तो मरीज के पूरी तरह ठीक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। इलाज में देरी से वायरस को नस को नुकसान पहुंचाने का मौका मिल जाता है, जिससे रिकवरी अधूरी या लंबी हो सकती है।
इलाज कैसे होता है: इलाज में एंटी-वायरल दवाओं के साथ चेहरे की सूजन कम करने के लिए स्टेरायड दिए जाते हैं। स्टेरायड के सेवन से ब्लड प्रेशर और शुगर बढ़ने की आशंका रहती है, इसलिए इलाज के दौरान इनकी नियमित जांच जरूरी होती है।
घबराने की जरूरत नहीं: समय पर उपचार, दवाओं का सही सेवन और फिजियोथेरेपी से करीब 95 प्रतिशत तक मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं।
आम भ्रांति भ्रांति: चेहरे का टेढ़ापन मतलब स्ट्रोक।
सच्चाई: हर बार स्ट्रोक नहीं, बेल्स पाल्सी भी हो सकता है।
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