
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। किसी भी अधिकारी कर्मचारी संगठन के पदाधिकारियों के आमतौर पर उनसे जुड़े मुद्दे ही होतेहै। पदोन्नति में आरक्षण मुद्दे या समाज विशेष से जुड़े मुद्दे होते है। ब्राहम्ण बेटियों के खिलाफ आईएएस संतोष वर्मा ने सोची समझी रणनीति के तहत अपने राजनीतिक फायदे के लिए बयान दिया। बयान के बाद वर्मा ने खेद व्यक्त किया लेकिन वो फार्मिलिटी थी। सरकार के नोटिस से बचने के लिए उन्होंने ऐसा किया। वर्मा द्वारा जानबूझकर दिया गया बयान समाज के बीच में विष बोने की नीति है।
ये बातें सोमवार को नईदुनिया विमर्श कार्यक्रम में सपाक्स के अध्यक्ष और पूर्व आईएएस हीरालाल त्रिवेदी ने आईएएस संतोष वर्मा का असभ्य बयान और राजनीतिक विवशता से समाज में बढ़ रहा वैमनस्य विषय पर कहे। अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (अजाक्स) से संगठन का पदाधिकारी होने के नाते उन्हें इस तरह का बेतुका बयान के बजाए जनता से जुड़े मुद्दों पर बात करना थी।
अजाक्स जैसे संगठनों के लिए ब्राह्मण एक साफ्ट टारगेट होता है। ब्राह्मण बेटी पर जिस तरह का बयान वर्मा ने दिया उस पर तो अपराध का प्रकरण बनता और एफआईआर भी दर्ज होना चाहिए। ब्राहम्ण या अन्य किसी ने आरक्षित वर्ग की बेटी के लिए ऐसी बात कही होती या घूरकर भी देखा होता तो उस पर एट्रोसिटी एक्ट के तहत केस दर्ज हो जाता। संताेष वर्मा ने खुलेआम सर्वाजनिक मंच से यह बयान दिया। इस पर सरकार को प्रकरण दर्ज करना था। सरकार की भी मजबूरी होती है कि वो अपने वोट बैंक के कारण वर्ग विशेष से जुड़े लोगों की बयानबाजी पर कोई ठोस एक्शन नहीं ले पाती है।
हीरालाल त्रिवेदी ने कहा कि अब आरक्षण लागू हुआ था उसके 10 साल बाद सर्वे होना था लेकिन आयोज ने 75 साल बाद भी इसका आकंलन नहीं किया जिस वर्ग को लाभ दिया गया उसकी क्या स्थिति है। अब आरक्षित वर्ग वे लोग जिन्हें इसका लाभ नहीं मिला वो आवाज उठा रहे है। उम्मीद है अगले पांच से दस वर्षो में कुछ तो बदलेगा। सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है आरक्षित वर्ग में भी क्रीमीलेयर बनाई जाए। ऐसा नहीं किया गया तो सक्षम और सक्षम बनेगा और आरक्षण का लाभ आरक्षित वर्ग के जरुरत मंद को नहीं मिल पाएगा।