
धर्म डेस्क। 16 दिसंबर से खरमास 2025 की शुरुआत हो रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह अवधि संयम, साधना और आत्मचिंतन के लिए विशेष मानी जाती है। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार और नए व्यवसाय की शुरुआत जैसे मांगलिक कार्यों से दूरी बनाए रखने की सलाह दी जाती है। वहीं पूजा-पाठ, दान-पुण्य और तीर्थ यात्रा जैसे धार्मिक कार्य इस समय विशेष शुभ फल प्रदान करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, खरमास में सूर्य देव धनु या मीन राशि में विराजमान रहते हैं। इस अवस्था में उनकी ऊर्जा अपेक्षाकृत कमजोर मानी जाती है। सूर्य देव को नवग्रहों का राजा और आत्मा का कारक माना गया है, इसलिए उनकी पूर्ण शक्ति के बिना किए गए मांगलिक कार्यों से अपेक्षित फल नहीं मिल पाता। साथ ही, गुरु ग्रह (बृहस्पति) भी इस दौरान अपनी पूरी शुभ शक्ति प्रकट नहीं कर पाते, जिससे शुभ कार्यों का प्रभाव अधूरा रह सकता है।
इसी कारण खरमास की अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार या किसी नए व्यवसाय की शुरुआत को टालना ही उचित माना जाता है। यह समय बाहरी कार्यों की बजाय आत्मिक उन्नति, धैर्य और धार्मिक साधनाओं पर ध्यान केंद्रित करने का होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खरमास में किए गए पूजा-पाठ, जप-तप और दान-पुण्य जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। इससे मानसिक शांति मिलती है और भविष्य में किए जाने वाले मांगलिक कार्यों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनती हैं।
यह भी पढ़ें- 15 दिसंबर को सूर्य का राशि परिवर्तन, शुरू होगा धनुर्मास, शुक्र अस्त होने के कारण मांगलिक कार्यों पर लगेगा विराम
पूजा-पाठ और भजन-कीर्तन: प्रतिदिन भगवान विष्णु, शिव या अपने इष्ट देव की आराधना करने से मन शांत रहता है और पारिवारिक वातावरण में संतुलन बना रहता है।
दान-पुण्य और सेवा: जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
तीर्थ यात्रा और धार्मिक दर्शन: इस दौरान तीर्थ स्थानों की यात्रा करने से आध्यात्मिक लाभ मिलता है और मानसिक ऊर्जा का सही प्रवाह होता है।
घर की स्वच्छता और सकारात्मक माहौल: पूजा स्थल की सफाई, दीपक जलाना और शुद्ध वातावरण बनाए रखना सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
ध्यान और आत्मनिरीक्षण: ध्यान, जप और आत्मचिंतन से मानसिक स्थिरता बढ़ती है और जीवन से जुड़े फैसले लेने की क्षमता मजबूत होती है।
कुल मिलाकर, खरमास को ठहराव और साधना का समय माना गया है। इस अवधि में संयम और धार्मिक आचरण अपनाने से जीवन में संतुलन, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है।